
All Sanskrit grammar part – 4 सम्पूर्ण संस्कृत व्याकरण अच् संधि (स्वर संधि ) गुण संधि परिभाषा भेद उदाहरण
गुण संधि –
सूत्र- आद् गुणः
परिभाषा – – यदि अ या आ के बाद इ, या ई आए तो दोनों के स्थान पर ‘ए’ गुणादेश हो जाता है। इसी प्रकार अ या आ के बाद उ या ऊ आए तो दोनों के स्थान पर ओ गुणादेश हो जाता है। अर्थात्
अ , आ + इ, ई = ए
अ + इ = ए= उप + इन्द्रः = उपेन्द्रः
आ + इ = ए = तथा + इत= तथेति
अ + ई = ए = सुर + ईश: = सुरेशः
आ + ई = ए = रमा + ईशः = रमेश:
अ. आ + उ , ऊ = ओ
अ+उ =ओ = हित + उपदेशः = = हितोपदेशः
आ + उ =ओ = गंगा + उदकम् = गंगोदकम्
अ + ऊ =ओ = पीन + ऊरूः = पीनोरूः
आ + ऊ= ओ = महा + ऊरूः =महोरूः
उपेन्द्रः शब्द का स्पष्टीकरण– उप + इन्द्र उपेन्द्रः । इस विग्रह मे उप के प में स्थित अ के पश्चात् इन्द्र में स्थित इ आने के कारण ‘आद्गुणः’ सूत्र से अ +इ = ए गुणादेश होकर उपेन्द्रः शब्द निष्पन्न हुआ।
गुण संधि – अन्य उदाहरण
- अंत्य + इष्टि = अंत्येष्टि
- उप + इंद्र = उपेन्द्र
- नर + इंद्र = नरेंद्र
- भारत + इंदु = भारतेंदु
- इतर + इतर = इतरेतर
- गज + इंद्र = गजेन्द्र
- देव + इंद्र = देवेन्द्र
- न + इष्ट = नेष्ट
- न + इति = नेति
- नृप + इंद्र = नृपेंद्र
- अप + ईक्षा = अपेक्षा
- उप + ईक्षा = उपेक्षा
- अंकन + ईक्षण = अंकेक्षण
- गण + ईश = गणेश
- धन + ईश = धनेश
- परम + ईश्वर = परमेश्वर
- ज्ञान + ईश = ज्ञानेश
- प्राण + ईश्वरी = प्राणेश्वरी
- गोप + ईश = गोपेश
- जीव + ईश = जीवेश
- नर + ईश = नरेश
- प्र + ईक्षा = प्रेक्षा
- उमा + ईश = उमेश
- रमा + ईश = रमेश
- कमला + ईश = कमलेश
- अलका + ईश् = अलकेश
- गुडाका + ईश = गुडाकेश
- ऋषिका + ईश = ऋषिकेश
- महा + ईश = महेश
- अतिशय + उक्ति = अतिश्योक्ति
- ग्राम + उत्थान = ग्रामोत्थान
- गर्व + उन्नत = गर्वोन्नत
- जल + उदर = जलोदर
- अत्य + उदय = अत्योदय
- अन्य + उक्ति = अन्योक्ति
- आद्य + उपांत = आद्योपांत
- ज्ञान + उदय = ज्ञानोदय
- दर्प + उक्ति = दर्पोक्ति
- धर्म + उपदेश = धर्मोपदेश
- आनन्द + उत्सव = आन्दोत्सव
- उत्तर + उत्तर = उत्तरोतर
- महा + उपकार = महोपकर
- महा + उदय = महोदय
- होलिका + उत्सव = होलिकोत्सव
- अन्य + उदर = अन्योदर
- गंगा + उदक = गंगोदक
- महा + उपदेशक = महोपदेशक
- महा + उत्सव = महोत्सव
- यथा + उचित = यथोचित
- जल + ऊष्मा = जलोष्मा
- समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोमि
- नव + ऊढ़ = नवोढ़ा
- उच्च + उधर्व = उच्चोधर्व
- जल + ऊर्जा = जलोर्जा
- जल + उर्मि = जलोर्मि
- उच्च + उधर्व = उच्चोधर्व
- जल + ऊर्जा = जलोर्जा
उरणरपरः – यह गुण संधि का पूरक सूत्र है अर्थात् ‘आद्गुणः’ सूत्र अ + इ = ए, अ + उ =ओ का निर्देश कर रहा था, किन्तु यह सूत्र ऋ, लृ को रपर् करने का विधान कर रहा है। तदनुसार अ + ऋ =अर् तथा अ + लृ= अल् हो जाता है अर्थात् ‘अदेङ् गुणः’ परिभाषा के अनुसार अ गुण होगा, किन्तु उसे र् पर आदेश होकर अर् और अल् रूप होंगे। तदनुसार
अ + ऋ = अर् ,
आ + ऋ = अर्।
अ + लृ= अल्
आ + लृ =अल्।
आ + लृ अल्|
आ + लृ = अल्
जैसे–
ब्रह्म + ऋषिः = अ + ॠ = अर् = ब्रह्मर्षिः
ग्रीष्म + ऋतु: = अ + ॠ = अर् = ग्रीष्मर्तुः
देव + ऋतु: =अ + ॠ = अर् == देवर्तुः
तव + लृकार: =अ + लृ = अल् = तवल्कारः
ब्रह्मर्षिः शब्द का स्पष्टीकरण– ब्रह्म + ऋषिः = ब्रह्मर्षिः। इस विग्रह में ब्रह्म के अन्त में स्थित म के अ (म् +अ =म) के बाद लृकार का लृ आने पर आद्गुणः’ सूत्र से गुण आदेश तथा उपर्युक्त ‘उरणरपरः’ सूत्र से उसे रपर् होकर अर् हुआ तथा ब्रह्म + अर्+षिः = ब्रह्मर्षिः शब्द बना।
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