
NCERT Solution For Class 12 Hindi 2022 Chapter 3 kunvar narayan
NCERT कक्षा 12 हिंदी आरोह पाठ-3 कुंवर नारायण के सभी प्रश्न हल सहित
अभ्यास – कविता के साथ
- इस कविता के बहाने बताएँ कि ‘सब घर एक कर देने के माने’ क्या है?
उत्तर:- बच्चे खेल-खेल में अपनी सीमा, अपने-परायों का भेद भूल जाते हैं। वे एक जगह से दूसरी जगह बिना विचारे दौड़ते रहते है, उन्हें किसी के रोक-टोक की चिन्ता नही रहती है, उसी प्रकार कविता भी शब्दों का खेल है, इसका क्षेत्र व्यापक होता है। उसे किसी का भय नहीं रहता । कलम को किसी बंधन में बाँधा नहीं जा सकता, अतः कवि को कविता करते वक्त अपने पराये या वर्ग विशेष का भेद अथवा बंधन भूलकर लोक हित में कविता लिखनी चाहिए।
- ‘उड़ने’ और ‘खिलने’ का कविता से क्या संबंध बनता है?
उत्तरः- पंछी की उड़ान और कवि की कल्पना की उड़ान दोनों दूर तक जाती हैं। दोनों का लक्ष्य ऊँचाई मापना होता है। कविता में कवि की कल्पना की उड़ान होती है जिसकी सीमा अनन्त होती है, इसीलिए कहा गया है –
‘जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि’
जिस प्रकार फूल खिलकर अपनी सुगंध एवं सौंदर्य से लोगों को आनंद प्रदान करता है, नवजीवन देता है उसी प्रकार कविता भी सदैव • खिली रहकर लोगों को भावों विचारों का रसपान कराती है, पाठकों में नवीन स्फूर्ति एवं ऊर्जा का संचार करती है।
- कविता और बच्चे को समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:- कविता और बच्चे दोनों अपने स्वभाव वश खेलते हैं। खेल-खेल में वे अपनी सीमा, अपने-परायों का भेद भूल जाते हैं। जिस प्रकार एक शरारती बच्चा किसी की पकड़ में नहीं आता उसी प्रकार कविता में उलझा दी गई बात तमाम कोशिशों के बावजूद समझने के योग्य नहीं रह जाती चाहे उसके लिए कितने ही प्रयास किए जाये, वह एक शरारती बच्चे की तरह हाथों से फिसल जाती है, प्रेमयुक्त आचरण एवं शब्दों से बिगड़ी बात मनाई भी जा सकती है।
- कविता के संदर्भ में ‘बिना मुरझाए महकने के माने’ क्या होते हैं?
उत्तर:- कविता कालजयी होती है उसका मूल्य शाश्वत होता है, ये जब भी पढ़ी जाती है तब पाठकों को आनंद ही देती है। जैसे सदियों पूर्व लिखा गया सूर -तुलसी का काव्य आज भी उतना आनन्द देता है जितना अपने समय में देता था। जबकि फूल बहुत जल्दी मुरझा जाते हैं और शोभाहीन होकर अपनी सुन्दरता एवं अस्तित्व खो देते हैं।
- ”भाषा को सहूलियत” से बरतने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:- ‘भाषा को सहूलियत से बरतने का आशय है सीधी, सरल एवं सटीक भाषा के प्रयोग से है। भाव के अनुसार उपयुक्त भाषा का प्रयोग करने वाले लोग ही बात के धनी माने जाते हैं।
- बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में ‘सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है’ कैसे ?
उत्तर:- बात और भाषा दोनों परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी कवि, लेखक आदि अपनी बात को प्रभावपूर्ण ढंग से बताने के लिए अपनी भाषा को ज्यादा ही अलंकृत बना देते है या शब्दों के चयन में उलझ जाते हैं । भाषा के चक्कर में वे अपनी मूल बात को प्रकट ही नहीं कर पाते। श्रोता या पाठक उनके शब्द जाल में उलझ कर रह जाते हैं और ‘सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है’।
- व्याख्या करें
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई।
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।
उत्तर:- कवि कहते हैं कि एक बार वह सरल सीधे कथ्य की अभिव्यक्ति करते समय भाषा को अलंकृत करने के चक्कर में ऐसा फँस गया कि वह अपनी मूल बात को प्रकट ही नहीं कर पाया और उसे कथ्य ही बदला-बदला सा लगने लगा। कवि कहता है कि जिस प्रकार जोर जबरदस्ती करने से कील की चूड़ी मर जाती है और तब चूड़ीदार कील को चूड़ीविहीन कील की तरह ठोंकना पड़ता है उसी प्रकार कथ्य के अनुकूल भाषा के अभाव में कथन का प्रभाव नष्ट हो जाता है और अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
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