
संस्कृत अनुवाद कैसे करें – संस्कृत अनुवाद की सरलतम विधि – sanskrit anuvad ke niyam part – 3
इसके बाद हमें अनुवाद करना है— वह अब क्यों खेलता है’, इस वाक्य का। ‘वह खेलता है’, इसका अनुवाद हम ‘सः खेलति या क्रीडति’ बना चुके हैं। प्रश्न उठता है, यहाँ प्रयुक्त ‘अब’ और ‘क्यों’ पदों का अनुवाद कैसे बनाया जाए? बड़ा असान है, कुछ शब्दों को याद कीजिए,
१. अब -अधुना, २. क्यों =कथम्, ३. कब= कदा
, ४. जब = यदा, ५.नहीं = न, ६. यहाँ = अत्र,
७ वहाँ तत्र, ८. कहाँ = कुत्र, ९. जहाँ = यत्र,
१०. आज = अद्य, ११. क्या = किम्।
हम देखते हैं कि ‘अब’ की संस्कृत है ‘अधुना’ और ‘क्यों’ की संस्कृत है ‘कथम्’।
ये अव्यय शब्द होने के कारण ज्यों के त्यों प्रयुक्त होंगे अर्थात् इनके रूप
नहीं चलते हैं और तब अनुवाद होगा सः अधुना कथं क्रीडति। इसी प्रकर अन्य अव्यय शब्दों के प्रयोगों को भी समझना चाहिए।
इस प्रसङ्ग में एक बात और विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि
यदि वाक्य ‘वह क्यों खेल रहा है, ‘ होता तो भी ‘सः अधुना कथं क्रीडति’ ही अनुवाद होता।
‘रहा है’ की अलग संस्कृत बनाने की आवश्यकता नहीं है।
इसके अतिरिक्त यदि उक्त वाक्य में हम शब्दों के क्रम को बदल भी दें तो भी वाक्य गलत नहीं होगा। जैसे— सः क्रीडति अधुना कथम्, क्रीडति सः कथमधुना, कथं सः अधुना क्रीडति इत्यादि किसी भी प्रकार अनुवाद बनाया जा सकता है। इसके विपरीत अंग्रेजी अथवा हिन्दी में ऐसा प्रयोग सम्भव नहीं है। आइये कुछ अव्यय शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाएँ
अभ्यास ४ – १. वह अब यहाँ क्यों पढ़ता है,
२. तुम दोनों वहाँ क्यों हँसते हो,
३. क्या वह खेलता है,
४. तुम सब अब क्यों नहीं पढ़ते हो,
५. हम दोनों वहाँ नहीं घूमते हैं,
६. आज वे दोनों क्यों पढ़ रहे हैं,
७. राम जहाँ पढ़ता है, वहाँ बोलता नहीं है,
८. रमा क्यों नहीं चल रही है,
९. आज यहाँ पत्ते (पत्राणि) नहीं गिर रहे हैं,
१०, वह आज वहाँ रक्षा क्यों नहीं कर रहा है।
परीक्षण करें- क्या आपने अनुवाद ठीक किया है ?
१. सः अधुना अत्र कथं पठति,
२. युवाम् तत्र कथं हसथः
३. किं स क्रीडति,
४. यूयम् अधुना कथं न पठथ
५. आवाम् तत्र न अटाव:
६. अद्य तौ कथं पठतः
७. रामः यत्र पठति, तत्र न वदति,
८. रमा कथं न चलति,
९. अद्य अत्र पत्राणि न पतन्ति,
१० सः अद्य तत्र कथं न रक्षति ।
गुरु के रूप – GURU KE ROOP
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमा | गुरु | गुरू | गुरव: |
द्वितीय | गुरुम् | गुरू | गुरून् |
तृतीया | गुरुणा | गुरुभ्याम् | गुरुभि: |
चतुर्थी | गुरवे | गुरुभ्याम् | गुरुभ्याम् |
पंचामी | गुरो: | गुरुभ्याम् | गुरुभ्याम् |
षष्ठी | गुरो: | गुर्वो: | गुरूणाम् |
सप्तमी | गुरौ | गुर्वो: | गुरुषु |
संबोधन | हे गुरो | हे गुरू | हे गुरव: |
गुरु के रूप guru ke roop
गुरु शब्द के रूप (उकारान्त पुल्लिंग)
(गुर+ उ उकार है अन्त में – जिसके
इन शब्द रूपों में एक बात का विशेष ध्यान रखें कि यहाँ कुछ स्थलों पर दीर्घ ‘ऊ’ प्रयुक्त हुआ है जिसे इस चिह्न द्वारा (रू) प्रदर्शित किया जाता है। इस प्रकार प्रयोग न करने पर (रु) वह ह्रस्व उ होगा।
इसी प्रकार अन्य उकारान्त पुल्लिंग शब्दों के रूपों का भी अभ्यास करें, बोलकर तथा लिखकर । जैसे— शिशु भानु, वायु, मृदु (कोमल), तरु (वृक्ष). पशु, मृत्यु, साधु, बाहु, इन्दु, रिपु, विष्णु, सिन्धु, शम्भु, ऋतु, बन्धु, जन्तु, वेणु आदि ।
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