Up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 9 CHATURASHCHAUR संस्कृत दिग्दर्शिका नवमः पाठः चतुरश्चौरः
कक्षा 11 हिंदी नवमः पाठः चतुरश्चौरः
निम्नलिखित पद्यावतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए
1 — आसीत् काञ्ची…………………………………….विचक्षणाः॥
शब्दार्थ- आसीत् = थी; था, तत्रैकदा > तत्र + एकदा = वहाँ एक बार, कस्यापि > कस्य + अपि = किसी का,
चोरयन्तश्चत्वारश्चौराः > चोरयन्तः + चत्वारः + चौराः = चुराते हुए चार चोर, सन्धिद्वारि = सेंध के द्वार पर, प्रशास्तृपुरुषैः = राजपुरुषों या सिपाहियों द्वारा, घातकपुरुषान् = जल्लादों को, आदिष्टवान् = आदेश दिया, विमर्द= दमन करना, बुधा = विद्वानों ने, दण्डनीति-विचक्षणाः = दण्डनीति में, कुशल]
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘चतुरश्चौरः’ नामक पाठ से उद्धृत है ।।
अनुवाद- काँची नाम की (एक) राजधानी थी ।। वहाँ सुप्रताप नाम का राजा था ।। वहाँ एक दिन किसी धनिक का धन चुराते हुए चोरों को सेंध के द्वार पर सिपाहियों ने जंजीर से बाँधकर राजा को सौंप दिया और राजा ने जल्लादों को आदेश दिया- “अरे! जल्लादों! इन्हें ले जाकर मार दो ।। ” क्योंकि दण्डनीति में कुशल विद्वान् राजा का कर्त्तव्य सज्जनों को बढ़ाना (पालना) तथा दुष्टों को दण्ड देना बताते हैं ।।
2 — ततो राजाज्ञया ……………………………. — नरः॥
[शब्दार्थ- त्रयश्चौरा: > त्रयः + चौराः = तीन चोरों को, शूलम् आरोप्य हताः = सूली पर चढ़ाकर मार दिए गए, प्रत्यासन्नेऽपि> प्रत्यासन्ने + अपि = समीप होने पर भी, विधीयते = मारा जाता हुआ, भूभुजा= राजा के द्वारा, प्रत्यायति = लौट आता है, प्रतीकारपरः= उपाय करने में लगा]
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद- तब राजा की आज्ञा से तीन चोर सूली पर चढ़ाकर मार दिये गये ।। चौथे ने सोचामृत्यु निकट होने पर भी (मनुष्य को अपनी) रक्षा का उपाय करना चाहिए ।। उपाय के सफल होने पर रक्षा हो जाती है (और)निष्फल (व्यर्थ) होने पर मृत्यु से अधिक (बुरा तो) और कुछ (होने वाला) नहीं ।। रोग से पीड़ित होने या राजा द्वारा मरवाये जाने पर भी मनुष्य यदि (अपने बचाव के) उपाय में तत्पर हो, तो यम के द्वार से (मृत्यु के मुख से) भी लौट आता है ।।
3 — चौरोऽवदत् ……………………….मया दातव्या?
शब्दार्थ- राजसन्निधानं = राजा के पास, यतोऽहमेकां> यतः+ अहम् + एकाम् = क्योंकि मैं एक, मर्त्यलोके = पृथ्वी पर; संसार में, पापपुरुषाधम>पाप-पुरुष+ अधम= पापी पुरुषों में नीच, तवाधमस्य>तव+ अधमस्य= तुझ अधम नीच की, पूजायितव्या = सम्मानित होगी, कर्तुमिच्छथ > कर्तुम् + इच्छथ = करना चाहते हो, ज्ञातुमिच्छति > ज्ञातुम् + इच्छति = जानना चाहता है, गृह्णातु = ग्रहण करे, दातव्या= देने योग्य]
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद- चोर बोला- “अरे वधिकों! तीन चोर तो तुम लोगों ने राजा की आज्ञा से मार ही दिये, किन्तु मुझे राजा के पास ले जाकर मारना; क्योंकि मैं एक महती (बड़ी महत्त्वपूर्ण) विद्या जातना हूँ ।। मेरे मरने पर वह विद्या लुप्त हो जाएगी ।। राजा उस (विद्या) को लेकर (सीखकर) मुझे मार दे, जिससे वह विद्या मृत्युलोक (पृथ्वी) में तो रह जाये ।। जल्लादों ने कहा- ‘अरे चोर! पापी लोगों (पापियों) में नीच! तू वध-स्थान पर लाया जा चुका है ।। क्या तू और जीना चाहता है? तुझ (जैसे) अधम की विद्या राजा के द्वारा कैसे पूजनीय होगी?’ चोर ने कहा- ‘अरे! जल्लादों! क्या बोलते (बकते) हो? राजा के कार्य में विघ्न डालना चाहते हो? तुम जाकर निवेदन करो ।। यदि राजा उस विद्या को जानना चाहता है तो ले-ले ।। वह विद्या मैं तुम्हें कैसे दे दूँ?’
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3– ततश्चौरस्य……………………… न वपति?
शब्दार्थ- राजकार्यानरोधेन > राज -कार्य + अनरोधेन = राजकाज के अनरोध से — राजे निवेदिता = राजा से निवेदन किया, सकौतुकं = कौतूहल से, सर्षपपरिमाणानि = सरसों के बराबर, उप्यन्ते = बोए जाते हैं, कन्दल्यः = अंकुर, रक्तिकामात्रेण = रत्ती-मात्र से, पलसंङ्ख्याकानि = पल नामक परिमाण की संख्या में, देव! = हे देव आप!, कस्यासत्यभाषणे>कस्य + असत्यभाषणे = किसकी झूठ बोलने में, शक्तिः = सामर्थ्य, व्यभिचरितं = असत्य या गलत, ततश्चौरः > ततः+चौरः = तब चोर ने, दाहयित्वा = तपाकर, परमनिगूढस्थाने = अत्यन्त गुप्त स्थान में, भूपरिष्कारम = भूमि की सफाई, वप्ता = बोने वाला, सुवर्णवपने = सोना बोने में, सुवर्णवपनाधिकारों नास्ति > सुवर्णः + वपन + अधिकार + नः + अस्ति= सोना बोने का अधिकार नहीं है ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद- तत्पश्चात् चोर के कहने से और राजकाज के लिहाज से उन्होंने यह बात रोजा से कही और राजा ने कौतूहलवश चोर को बुलाकर पूछा- रे चोर! तू कौन-सी विद्या जानता है?’ चोर ने कहा- ‘सरसो’ के बराबर सोने के बीज बनाकर भूमि में बोए जाते हैं और एक माह में ही अंकुर और फूल आ जाते हैं ।। वे फूल सोना ही होते हैं ।। रत्तीमात्र बीज से फल (नामक परिमाण) की संख्या में बीज हो जाते हैं ।। उसे आप प्रत्यक्ष देख लें ।। राजा ने कहा- रे चोर! क्या यह सत्य है?’ चोर ने कहा’आपके सामने झूठ बोलने की सामर्थ्य किसकी है? (अर्थात् आपके सामने झूठ बोलने को किसी में सामर्थ नहीं है ।। ) यदि मेरा वचन असत्य हो, तो एक माह में मेरा भी अन्त हो जाएगा ।। राजा ने कहा- ‘हे भद्र! सोना बोओ ।। ‘ तब चोर ने सोने को तपाकर, सरसों के आकार के बीच बनाकर राजा के अन्तःपुर के क्रीड़ा-सरोवर के किनारे पर अत्यन्त गुप्त स्थान (एकान्त स्थान) में भूमि की सफाई करके कहा- ‘हे देव! खेत और बीज तैयार हैं, कोई बोनेवाला दीजिए ।। ‘ राजा ने कहा- ‘तुम ही क्यों नहीं बोते?’ चोर ने कहा- ‘महाराज! यदि सोना बोने का मेरा अधिकार होता तो इस विद्या के होते हुए मैं दुःखी क्यों होता? किन्तु चोर को सोना बोने का अधिकार नहीं है ।। जिसने कभी कुछ भी न चुराया हो, वह बोए ।। महाराज (आप) ही क्यों नहीं बोते?’
5 — राजाऽवदत् …………………चोरिताः ।।
शब्दार्थ- चारणेभ्यो = चारणों (भाटों) को, तातचरणाम् = पिता जी का, राजोप जीविनः > राजा + उपजीविन = राजा के सहारे जीने वाले, अस्तेयिनः= चोरी न करने वाले, मोदकाः= लड्डू सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद- राजा ने कहा- “मैंने चारणों (भाटों) को देने के लिए पिताजी का धन चुराया था ।। चोर ने कहा- ‘तब मन्त्रिगण बोएँ ।। ‘ मन्त्रियों ने कहा- ‘राजा के सहारे जीतेवाले हम लोग, फिर चोरी ने करनेवाले कैसे हो सकते हैं? चोर ने कहा- ‘तो धर्माधिकारी बोए ।। ‘ धर्माधिकारी ने कहा- ‘मैंने बचपन में (अपनी) माता के लड्डू चुराए थे ।।
6 — चौरोऽवदत् ………………….गतः ।।
शब्दार्थ- तच्चौरवचनं > तत् + चोरवचनम = चोर के उस वचन को, हास्यरसापनीतक्रोधो> हास्य-रस + अपनीत + क्रोधः = हास्य रस से क्रोध दूर होने पर, प्रस्तावे= समय-समय पर; अवसर पर, धृतः = रख लिया, समुच्छिद्य = काटकर, वल्लभतांगतः= प्रिय हो गया]
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद- चोर बोला- ‘यदि तुम सब चोर हो, तो मैं अकेला ही क्यों मारे जाने योग्य हूँ?’ चोर के उस वचन को सुनकर समस्त सभासद हँस पड़े ।। हास्य रस से (हँसी के कारण क्रोध दूर हो जाने पर) राजा ने भी हँसकर कहा- रे चोर! तू मारने योग्य नहीं है ।। हे मन्त्रियों! दुर्बुद्धि होते हुए भी यह चोर बुद्धिमान् और हास्य रस में प्रवीण है ।। अत: यह मेरे ही निकट रहे ।। समय-समय पर मुझे हँसाए और खिलाए (मेरा मनारंजन करे) ।। ‘ ऐसा कहकर राजा ने उस चोर को अपने पास रख लिया ।। चोर से अधिक कोई अधम नहीं होता, परन्तु वह (चोर) हँसी और विद्या के कारण मृत्यु के जाल को काटकर राजा को प्रिय हो गया ।।
सूक्ति-व्याख्या संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित सूक्तिरक पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए
1 — राजधर्म बुधा प्राहुर्दण्डनीति-विचक्षणाः॥
सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘चतुरश्चौरः’ नामक पाठ से उद्धृत है ।।
प्रसंग-सैनिकों द्वारा पकड़कर लाए गए चोरों को मृत्युदण्ड देने का आदेश देता हुआ राजा जल्लादों को राजधर्म के विषय में यह सूक्ति कहता है ।। व्याख्या- दण्डनीति में कुशल विद्वान राजधर्म अर्थात् राजाओं का कर्त्तव्य बताते हुए कहते हैं कि वास्तव में आदर्श राजा वही होता है जो सज्जनों का सभी प्रकार से पालन-पोषण करता है और उन्हें सर्वविध सरंक्षण प्रदान करता है ।। इसके अतिरिक्त वह दुष्टों और अपराधियों को कठोर-से-कठोर दण्ड देकर उनको हतोत्साहित करता है अथवा उनका समूल विनाश कर देता है ।। जो भी राजा इस कर्त्तव्य का निर्वाह करता है, वही अपने राजधर्म का भी उचित निर्वाह करता है ।।
2 — प्रत्यासन्नेऽपि मरणे रक्षोपायो विधीयते ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- मृत्युदण्ड सुनाये गये चारों चोरों में चौथे चोर को जब जल्लाद वधस्थल पर ले आये तो वह अपने प्राण बचाने का उपाय सोचता हुआ यह सूक्ति कहता है ।।
व्याख्या- इस सूक्ति का आशय यह है कि मृत्यु सिर पर भी खड़ी हो तो भी मनुष्य को निराश होकर नहीं बैठ जाना चाहिए, वरन् अपनी रक्षा का उपाय करना चाहिए अर्थात् कितना ही बड़ा संकट क्यों न हो, मनुष्य को निराश कदापि नहीं होना चाहिए, अपितु उसमें से बच निकलने का उपाय खोजना चाहिए ।। यदि उपाय सफल हो गया तो रक्षा हो जाएगी, यदि विफल हो गया तो संकट यथापूर्व बना रहता है ।। अत: व्यक्ति को निराशा को त्यागकर पूरी आशा के साथ अपनी रक्षा का उपाय करना चाहिए; क्योंकि निराशा तो साक्षात् मृत्यु है ।।
3 — उपाये सफले रक्षा निष्फले नाधिकं मृतेः॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत सूक्तिपरक पंक्ति में बताया गया है कि उपाय के सफल होने पर रक्षा हो जाती है ।। व्याख्या- व्यक्ति को अत्यधिक परेशानी आने पर भी उससे हार नहीं माननी चाहिए, अपितु उससे जूझते रहना चाहिए और सफल होने के लिए सतत प्रयास करते रहना चाहिए ।। यदि प्रयास करते रहने पर भी असफलता ही मिलती है तो भी उसे निराश न होकर नये तरीके से, नये जोश से प्रयास करना चाहिए ।। इस बात के अनेकानेक उदाहरण हमारे समक्ष हैं जिनमें कई बार असफल होने के बाद भी कार्य की सिद्धी के लिए निरन्तर प्रयासरत लोगों ने अन्ततः सफलता का ही वरण किया है ।। प्रस्तुत कथा भी यही शिक्षा देती है ।। वधस्थल पर लाये गये चार चारों में से तीन ने अपने बचाव का कोई उपाय नहीं किया और वे मृत्यु को प्राप्त हुए, लेकिन चौथे चोर ने बचाव का उपाय किया और सफल भी हुआ ।। प्रस्तुत सूक्ति निरन्तर कर्म में लगे रहने का भी सन्देश देती है ।।
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4 — प्रत्यायति यमद्वारात् प्रतीकरपरो नरः॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत सूक्तिपरक पंक्ति में बताया गया है कि प्रयास में लगा हुआ व्यक्ति मृत्यु-मुख से भी बच जाता है ।।
व्याख्या- यदि व्यक्ति अपनी रक्षा में लगा रहे तो वह साक्षात् मृत्यु के मुख से भी बचकर निकल आता है ।। कहने का आशय यह है कि व्यक्ति को किसी भी स्थिति में निराश न होकर, आत्मविश्वास न खोकर, संकट से उबरने का उपाय सोचते रहना चाहिए ।। ऐसा आत्मविश्वासी एवं दृढ़चित्त-व्यक्ति आसन्न मृत्यु (या विपत्ति) से भी बच निकलता है, किन्तु जो पहले ही निराश या हतोत्साहित हो जाता है, वह बचने की पूरी सम्भावना रहते हुए भी बच नहीं पाता ।। अत: मनुष्य को कष्ट-निवारण हेतु प्रयत्न अवश्य करना चाहिए ।। प्रयत्न करने पर वह बड़ी-से-बड़ी विपत्ति का भी सामना कर सकता है ।।
5 — न चौरादधमः कश्चित् ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत सूक्ति में बताया गया है कि चोर सबसे बड़ा पापी होता है ।।
व्याख्या- यदि कोई व्यक्ति किसी प्रकार की चोरी करता है तो उससे बड़ा पापी (अधम) संसार में दूसरा कोई नहीं है ।। वह
चोरी करकर अपने अस्तेय के व्रत को तोड़ता है तथा अपना धर्म व नीयत भ्रष्ट कर लेता है ।। तथा दण्ड का पात्र बन जाता है ।।
पाठ पर आधारित प्रश्न
1 — राज्ञः सुप्रतापस्य राजधानी कः आसीत्?
उत्तर– राज्ञः सुप्रतापस्य राजधानी काञ्ची आसीत् ।।
2 — काञ्ची कस्य राजधानी आसीत्?
उत्तर– काञ्ची राज्ञः सुप्रतापस्य राजधानी आसीत् ।।
3 — प्रशास्तृपुरुषैः चौराः कुत्र गृहीत्वाः?
उत्तर– प्रशास्तृपुरुषैः चौरा: सन्धिद्वारे गृहीत्वाः ।।
4 — चौराः किम् अचोरयन्?
उत्तर– चौराः धनिकस्य धनम् अचोरयन् ।।
5 — राज्ञाघातकापुरुषाकिम आदिशत्?
उत्तर– राजा घातकापुरुषान् आदिशत्, ‘इमान चौरान् नीत्वा मारयत्’ इति ।।
6 — चतुर्थेन चौरेण किंचिन्तितम्?
उत्तर– चतुर्थेन चौरेण रक्षोपायः चिन्तितम् ।।
7 — कीदृशः नरः यमद्वारात् प्रत्यायाति?
उत्तर– प्रतीकारपरो नरः यमद्वारात् प्रत्यायाति ।।
8 — राजा सुकौतकं चौरमाहूय किमपृच्छत्?
उत्तर– राजा सुकौतकं चौरमाहूय ‘कां विद्यां जानासि’ इति अपृच्छत ।।
9 — सुवर्ण तपने कस्य अधिकारः नास्ति?
उत्तर– सुवर्ण तपने चौरस्य अधिकार: नास्ति ।।
10 — राज्ञा किं चोरितमासीत्?
उत्तर– राज्ञा चारणदेभ्यो दातुं पितुः धनं चोरितामासीत ।।
11 — धर्माध्यक्ष किं अकथयत्? ।।
उत्तर– धर्माध्यक्ष कथयत् मया बाल्यदशायां मातुर्मोदकाश्चोरिताः ।।
12 — राज्ञा कस्य स्वसन्निधाने धृतः?
उत्तर– राज्ञा चौराः स्वसन्निधाने धृतः ।।
संस्कृत अनुवाद संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
1 — सुप्रताप नामक राजा था ।।
अनुवाद- सुप्रतापस्य नामक:राज्ञः आसीत् ।।
2 — तीन चोरों को जल्लादों ने मार डाला ।।
अनुवाद- त्रयश्चौराः घातकपुरुषाः हताः ।।
3— प्रतिकार करने वाला मनुष्य यम के द्वार से भी लौट आता है ।।
अनुवाद-प्रतिकारपरो नरः यमद्वारात् प्रत्यायति ।।
4 — मैं एक महान विद्या जानता हूँ ।।
अनुवाद- अहं एकां महतीं विद्यां जानामि ।।
5– हम सब वाराणसी जाएँगे ।।
अनुवाद- वयं वाराणसीं गमिष्यमिः ।।
6 — वह कलम से लिखता है ।।
अनुवाद-स: कलमेन् लिखति ।।
7 — हिमालय भारतवर्ष की रक्षा करता है ।।
अनुवाद-हिमालयः भारतवर्षं रक्षति ।।
8 — चौथा चौर अपने बुद्धिबल से बच गया ।।
अनुवाद- चतुर्थश्चौरः स्वबुद्धिबलेन रक्षितः ।।
9 — राजा ने उन्हें मृत्युदण्ड दिया ।।
अनुवाद- राजा तेभ्यः मृत्युदण्डमद्दात् ।।
10 — शिक्षा जीवन के लिए ही होती है ।।
अनुवाद- शिक्षा जीवनार्थायैव भवति ।।
1 — निम्नलिखित शब्द रूपों में विभक्ति एवं वचन बताइए
राजे, माम्, चतुर्थेन, विद्यया, युष्माभिः, धनिकस्य, वचनैः, यूयम् ।।
उत्तर– शब्दरूप ……….. — विभक्ति……….. — वचन
राज्ञे ……….. — चतुर्थी……….. — एकवचन ……….. — द्वितीया
चतुर्थेन ……….. — तृतीया……….. — एकवचन
विद्यया ……….. — तृतीया……….. — एकवचन
युष्माभिः………………………तृतीया……….. — बहुवचन
धनिकस्य…………षष्ठी ……….. — एकवचन
वचनैः ……….. — तृतीया……….. — बहुवचन
यूयम् ………….प्रथमा……….. — बहुवचन
2 — निम्नलिखित समस्तपदों का विग्रह कीजिए तथा समास का नाम भी बताइए
समस्तपद, सन्धिद्वारि, त्रयश्चौराः, शूलमारोप्य, राजकार्ये, मासामात्रैणैव, सुर्वणबीजनि, राज्ञाज्ञया, तत्रैकदा
समस्तपद ……….. समास-विग्रह……….. समास का नाम
सन्धिद्वारि ………………………सन्धिःद्वारः ……….. तत्पुरुष समास
त्रयश्चौराः ……….. — त्रयः चौरा: ……………… कर्मधारय समास
शूलमारोप्य ……….. — शूलं आरोप्य ……….. तत्पुरुष समास
राजकार्ये ……….. — राज्ञ:कार्ये ……….. तत्पुरुष समास
मासामात्रैणैव ……….. — मासमात्रैव एव ……….. तत्पुरुष समास
सुर्वणबीजनि………………………सुवर्णस्य बीजानि ……….. तत्पुरुष समास
राज्ञाज्ञया ……….. — राज्ञः आज्ञाया ……….. तत्पुरुष समास
तत्रैकदा ……….. — तत्रएकदा ……….. अव्ययीभाव समास
3 — निम्नलिखित धातु-रूपों में प्रयुक्त प्रत्यय लिखिए
धातु-रूप, आदिष्टवान, मारणीयम्, दाहायित्वा, पूजायितव्या, ज्ञातव्या
उत्तर– धातु-रूप……….. — प्रत्यय ……….. — धातु
आदिष्टवान ……….. — क्तवतु……….. — आ + दिश्
मारणीयम् ……….. — अनीयर् ……….. — मृ
दाहायित्वा……….. — कत्वा……….. — दाह्
पूजायितव्या ……….. — तव्यत् ……….. — पूजयित
ज्ञातव्या ……….. — तव्यत् ……….. — ज्ञा
4–निम्नलिखित का सन्धि विच्छेद कीजिए
शूलमारोप्य, सुवर्णान्येव, राजकार्यानुरोधेन, मृत्युपाशं, ममैव, मासमात्रैणैव, यतोऽहम्, त्रयश्चौराः, मासान्ते, राजाज्ञया, रक्षोपायः
उत्तर– सन्धि शब्द ……….. — सन्धि विच्छेद……….. — सन्धि नाम
शूलमारोप्य ………………………शूलम् + आरोप्य ……….. — अनुस्वार सन्धि
सुवर्णान्येव ……….. — सुवर्ण + अन्य + इव ……….. — दीर्घ, वृद्धि सन्धि
राजकार्यानुरोधेन ……….. — राजकार्य + अनुरोधेन ……….. — दीर्घ सन्धि
मृत्युपाशं …..,,,,,,,…… — मृत्यु + पाशं……….. — प्रकृतिभावं सन्धि
ममैव ……………. — मम + एव……………वृद्धि सन्धि
मासमात्रैणैव ……….. — मासमात्रैण + एव……….. — वृद्धि सन्धि
यतोऽहम् ……….. — यतः + अहम्……….. — उत्व सन्धि
त्रयश्चौराः ……….. — त्रयः + चौराः……….. — सत्व सन्धि
मासान्ते ………………………मासां + ते ……….. — परसवर्ण सन्धि
राजाज्ञया ……….. — राज्ञा + आज्ञया……….. — दीर्घ सन्धि
रक्षोपायः………………………रक्षा + उपायः……….. — वृद्धि सन्धि
5 — निम्नलिखित धातु-रूपों में मूलधातु एवं पुरुष, वचन स्पष्ट कीजिए
गृहणातु, तिष्ठतु, मारयत, अवदत्, अपृच्छत्, भविष्यति, वपसि, जानासि, विधीयते, इच्छासि
धातु रूप ……….. — मूल धातु…….. — वचन ……….. — पुरुष
गृहणातु……….. — ग्रह्……………………… प्रथम……….. — एकवचन
तिष्ठतु……….. — स्था ……….. — प्रथम……….. — एकवचन
मारयत……….. — मार्……….. — मध्यम……….. — बहुवचन
अवदत्……….. — वद् ……….. — प्रथम……….. — एकवचन
अपृच्छत्………………………प्रच्छ ……….. — प्रथम……….. — एकवचन
भविष्यति ……….. — भू ……….. — प्रथम……….. — एकवचन
वपसि …………वप ………. — प्रथम……….. — एकवचन
जानासि ……….. — ज्ञा……………………… मध्यम……….. — एकवचन
विधीयते ………. — वि+ धा……….. — प्रथम……….. — एकवचन
इच्छासि……….. — इष्……….. — मध्यम……….. — एकवचन
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