UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 2 सुभाषचन्द्रः
द्वितीयः पाठः सुभाषचन्द्रः का सम्पूर्ण हल
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Hindi to sanskrit translation | हिन्दी से संस्कृत अनुवाद 500 उदाहरण
संस्कृत अनुवाद कैसे करें – संस्कृत अनुवाद की सरलतम विधि – sanskrit anuvad ke niyam-1
निम्नलिखित गद्यावतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए
1- सप्तनवत्युत्तराष्टादशशततमेऽब्दे …………………………..स्वीकृतवान्।
[सप्तनवत्युत्तराष्टादशशततमेऽब्दे > सप्त + नवति + उत्तर + अष्टादश- शत-तमे + अब्दे = सन् 1897 ई० में, जनवरीमासस्य = जनवरी महीने की, त्रयोविंशतितिथौ = तेईस तारीख को, अलञ्चकार = अलंकृत किया, राजकीयप्राड्विवाकः = सरकारी वकील, भृत्यत्वम् = नौकरी]
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषचन्द्रः’ पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद- सन् अठारह सौ सत्तानबे के जनवरी महीने की तेईस तारीख (अर्थात् 23 जनवरी, व 1897 ई०) को श्री सुभाष ने अपने जन्म से बंगाल को अलंकृत किया। इनके पिता जानकीनाथ वसु सरकारी वकील थे। सुभाष बाल्यकाल से ही बुद्धिमान्, धैर्यशाली, साहसी और प्रतिभासम्पन्न थे। इन्होंने कलकत्ता नगर में शिक्षा प्राप्त करके सम्मानित आई०सी०एस० की परीक्षा उत्तीर्ण करके भी विदेशी शासन की नौकरी स्वीकार नहीं की।
2- आङ्ग्लशासकानां……………………………………………… सम्पादिता।
[भीताः = डरे हुए, अक्षिपन् = डाला, सप्तत्रिंशदुत्तरैकोनविंशतिशततमे > सप्तत्रिंशत + उत्तर + एकोनविंशति + शत-तमे = सन् 1937 ई०, वृतः = वरण किए गए; चुने गए, पञ्चाशद्वृषभयुक्ते = पचास बैलों से युक्त]
सन्दर्भ- पूर्ववत्
अनुवाद- अंग्रेज शासकों का भारत पर अधिकार नहीं है, वे विदेशी यहाँ क्यों शासन करते हैं? इस चिन्ता से ग्रस्त हो इन्होंने अपने प्रयत्न से भारतवर्ष की स्वतन्त्रता के लिए बहुत-से भारतीयों को अपने पक्ष में कर लिया। इस प्रकार इनके उग्र विचारों से भयभीत अंग्रेज शासकों ने इन्हें बार-बार जेल में डाला, परन्तु इस वीर ने स्वतन्त्रता के अपने प्रयास को नहीं छोड़ा। 1937 ई० में त्रिपुरा के कांग्रेस-अधिवेशन में इन्हें सर्वसम्मति से सभापति चुना गया और नागरिकों ने इनके सम्मान में पचास बैलों से युक्त रथ में इनकी शोभायात्रा निकाली।
3- अहिंसामात्रेण………………………………..बहिर्गतः । ।
क्रान्तिपक्षमङ्गीकृतवान् > क्रान्ति-पक्षम + अङ्गीकृतवान = क्रान्ति के पक्ष को स्वीकार किया, अस्योग्रक्रान्तेः = इनकी उग्र क्रान्ति से, पुनरिमं > पुनः + इमम = इन्हें; फिर, व्यदीर्यत = टुकड़े-टुकड़े हो गया; फट गया, कमायमानः = चाहते हुए, संस्मृत्य = स्मरण करके]
सन्दर्भ- पूर्ववत्
अनुवाद- “केवल अहिंसा से स्वतन्त्रता-प्राप्ति का प्रयास कल्पनामात्र है”- ऐसा निश्चय करके इन्होंने क्रान्ति के पक्ष को स्वीकार किया। इनकी उग्र क्रान्ति से डरकर अंग्रेज शासकों ने इन्हें फिर कलकत्ता (कोलकात्ता) नगर की जेल में डाल दिया। इस कष्टकर (अर्थात् दुःखद) वृत्तान्त को सुनकर सुभाष से प्रेम करनेवाले भारतीयों का हृदय फट (टुकड़े-टुकड़े हो) गया। एक बार रात में कारागार-निरीक्षकों के सो जाने पर यह वीर सहसा उठकर– “दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिए”- इस नीति का अनुसरण कर अपनी इष्टसिद्धि को चाहते हुए सिद्धिदात्री जगदम्बा का स्मरण करके कारगार से बाहर निकल गया।
4- प्रातःसुभाषमनवलोक्य …………………………………..देशंगतः।
[भृशमन्विष्यापि > भृशम् + अन्विष्य + अपि = बहुत खोज करके भी, वेषपरिवर्तनं विधाय = वेश बदलकर, वाणिजो गेहे > वणिजः + गेहे = व्यापारी या बनिये के घर में, अवधानपूर्वकं = सावधानी से]
सन्दर्भ- पूर्ववत्
अनुवाद- प्रात:काल सुभाष को न देखकर सभी कारगार-निरीक्षक आश्चर्यचकित हो गए, बहुत खोज करने पर भी वे उनको नहीं पा सके। कारगार से बाहर आकर सुभाष वेश बदलकर पेशावर नगर चले गए। वहाँ उत्तमचन्द्र नाम के वणिक् (बनिये या व्यापारी) के घर कुछ समय तक रहे। तत्पश्चात् अंग्रेज शासकों के सावधानी से निरीक्षक करने पर भी (बचकर) ‘जियाउद्दीन’ नाम से ‘जर्मन’ देश चले गए। वहाँ के हिटलर नाम के शासक से मैत्री करके वायुयान से जापान देश गए।
5- मलयदेशे…………………………………. इत्यासीत्।
[अस्यास्मिन् > अस्य + अस्मिन् = इनके इस, हिन्दुयवनादिसर्वसम्प्रदाया वलम्बिन:> हिन्दु-यवन + आदि-सर्व-सम्प्रदाय +अवलम्बिनः = हिन्दु-मुसलमान आदि सब सम्प्रदायों को मानने वाले, राष्ट्रानुरागिणः > राष्ट्र + अनुरागिणः = राष्ट्रप्रेमी, अभिवादनपदम् = अभिवादन; नमस्कार का शब्द, उद्घोषश्च = उद्घोषः + च = और नारा]
सन्दर्भ- पूर्ववत्
अनुवाद- मलय (मलाया) देश में अपने संगठन के कौशल से इन्होंने ‘आजाद हिन्द फौज’ नामक सेना का गठन किया। इनके इस गठन में हिन्दू-मुसलमान आदि समस्त सम्प्रदायों को माननेवाले (तथा) राष्ट्र से प्रेम करने वाले वीरवर सम्मिलित थे। इस गठन के अभिवादन का शब्द ‘जयहिन्द’ और नारा ‘दिल्ली चलो’ था।
6- यूयं मह्यं…………………………………अर्पितानि।
[रक्तमर्पयत > रक्तम् + अर्पयत = खून दो, त्वरितम् > त्वरितम् + एव = शीघ्र ही; तुरन्त ही, अवतीर्णः = उतर गया, तस्मिन्नेव > तस्मिन् + एव = उसी समय, सर्वणसूत्राण्यपि > सुवर्णसूत्राणि + अपि = सुवर्णसूत्र (मंगलसूत्र) भी, सुभाषचरणयोरर्पितानि > सुभाष-चरणयोः + अर्पितानि = सुभाष के चरणों में अर्पित कर दिए]
अनुवाद-जिसने भी सुभाष के मुख से- “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें स्वतन्त्रता दूंगा’- ऐसे रोमांचकारी शब्द सुने, वह तुरन्त ही (शीघ्र ही) उनके साथ स्वतन्त्रता-संग्राम में सैनिक के रूप में उतर गया। उसी समय ब्रह्मा (बर्मा; म्यामार) देश की नारियों ने अपने आभूषणें के साथ सौभाग्यसूचक सुवर्णसूत्र (मंगलसूत्र) भी सुभाष के चरणों में अर्पित कर दिए।
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7- दिल्ली चलत……………….. ………………………..सुनिश्चितम्।
[नातिदूरे > न + अतिदूरे = अधिक दूर नहीं है, प्रस्थिताः = प्रस्थान किया, बन्दीकृताः = बन्दी बना लिए गए, सप्तचत्वारिंशदुत्तरैकोनविंशातिशततेमेऽब्दे > सप्तचत्वारिंशत् + उत्तर + एकोनविंशति-शत-तम = 1947 ई० को। अगस्तमासस्य पञ्चदशतिथौ = अगस्त महीने की पन्द्रह तारीख को; 15 अगस्त को]
सन्दर्भ- पूर्ववत्
अनुवाद- सुभाष के- “दिल्ली चलो, दिल्ली बहुत दूर नहीं है’- इन उत्साहपूर्ण वचनों से सैनिकों ने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। इसी बीच दुर्भाग्यवश जापान देश की पराजय के कारण सुभाष के सारे सैनिक अंग्रेज शासकों के द्वारा बन्दी बना लिए गए। इस वीर श्रेष्ठ की स्वतन्त्रता-प्राप्ति की कामना सन् 1947 ई० में 15 अगस्त को पूर्ण हुई। आज हमारे बीच विद्यमान न होने पर भी सुभाष– “जिसकी कीर्ति है, वह जीवित है”- इस कथन के अनुसार सदैव अमर हैं; ऐसा सुनिश्चित है।
निम्नलिखित सक्तिरक पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए
1- अहिंसामात्रेण स्वातन्त्र्यप्राप्तेः प्रयासः कल्पनामात्रमेव।
सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषचन्द्रः’ नामक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग-प्रस्तुत सूक्तिपरक पंक्ति में बताया गया है कि मात्र अहिंसा से ही स्वतन्त्रता नहीं मिल सकती।
व्याख्या- भारतीय स्वातन्त्र्य-आन्दोलन में मुख्य रूप से दो विचारधाराओं के लोग संलग्न थे। इनमें से एक विचारधारा के लोग गाँधी जी के नेतृत्व में मात्र अहिंसा से स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए प्रयास कर रहे थे। दूसरी विचारधारा के लोग सुभाषचन्द्र बोस के समर्थक थे, जो कि मात्र अहिंसा के बल पर स्वतन्त्रता की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले प्रयास को कल्पना ही मानते थे। ये लोग सशस्त्र क्रान्ति को उचित समझते थे। इनका मानना था कि दुष्ट को दुष्टता से ही जीता जा सकता है। राम यदि रावण के विरुद्ध धनुष न उठाते, कृष्ण यदि अर्जुन को कौरवों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए प्रेरित न करते तो आज समग्र भारत में राक्षसत्व और अधर्मी जन ही शासन कर रहे होते। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सुभाषचन्द्र बोस की सशस्त्र क्रान्ति का विचार कुछ अंशों में उचित ही था।
2- शठे शाठ्यं समाचरेत्।
सन्दर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- अंग्रेजों की सुरक्षा-व्यवस्था को झुठलाते हुए सुभाष जेल से भाग निकले। इसी विषय में यह सूक्ति कही गयी है।
व्याख्या– दुष्ट आदमी के साथ सज्जनता का व्यवहार करना मूर्खता है; क्योंकि नीच व्यक्ति अपनी नीचता कदापि नहीं छोड़ता। उसके प्रति सज्जनता दिखाने से वह उसका दुरुपयोग कर और अधिक हानि पहुंचाता है। इसीलिए कहा गया है कि ‘पयः पानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम्’ अर्थात् साँपों को दूध पिलाने से उनका विष ही बढ़ता है। इसीलिए दुष्ट को उसी के हथियार अर्थात् दुष्टता से ही दबाया जा सकता है। इस कारण विषस्य विषमौषधम्’ (विष की औषध विष ही है) तथा ‘काँटे से काँटा निकलता है’ जैसी उक्तियाँ प्रचलित हुईं। अतः दुष्ट को किसी दुष्ट चाल से ही परास्त या विफल मनोरथ किया जा सकता है, सज्जनता से नहीं। इसी का आचरण करते हुए सुभाष; दुष्ट अंग्रेजों को धोखा देकर जेल से भाग गये। दुष्ट मनुष्य के विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रसिद्ध उक्ति है
नीच निचाई नहिं तजै, सज्जनहँ के संग।
तुलसी चन्दन बिटप बसि, विष नहिं तजत भुजंग।
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3- यूयं मह्रां रक्तमर्ययत्, अहं युष्मभ्यं स्वतंत्रता दास्यामि ।
सन्दर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- प्रस्तुत सूक्तिपरक वाक्य “तुम लोग मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” श्री सुभाष चन्द्र बोस का कथन है।
व्याख्या- सुभाषचन्द्र बोस स्वतन्त्रता-प्राप्ति के लिए संघर्ष को आवश्यक मानते थे। उनका मानना था कि बिना युद्ध के अंग्रेजों को भारत से नहीं भगाया जा सकता। इसीलिए वे लोगों को युद्ध के लिए अर्थात् सशस्त्र क्रान्ति के लिए प्रेरित किया करते थे और कहा करते थे कि तुम मुझे रक्त दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। उनके कहने का आशय यह था कि जब तक देशवासी अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करके अपने प्राणों का बलिदान नहीं कर देते, तब तक उनकी आने वाली पीढ़ियाँ स्वतन्त्रता का मुख नहीं देख सकतीं। अर्थात् यदि वे चाहती हैं कि उनके वंशज स्वतन्त्र राष्ट्र की मुक्त वायु में साँस लें, तो उन्हें अपने प्राणों को, सर्वस्व को होम करना ही पड़ेगा। सुभाष के ऐसे ही वाक्यों से प्रेरित होकर अनेक लोग स्वातन्त्र्य-यज्ञ में आहुति स्वरूप अपना बलिदान देने को कूद पड़े। .
4- दिल्ली नातिदूरे वर्तते।
सन्दर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- इस सूक्ति में सुभाषचन्द्र आजाद हिन्द फौज के सैनिकों को दिल्ली पर अधिकार करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहते हैं
व्याख्या- नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने भारतीयों को स्वतन्त्रता का अमर सन्देश दिया। बचपन से ही सुभाष के हृदय में देशभक्ति की भावना एवं क्रान्तिकारी विचार अपना स्थान बना चुके थे। अहिंसात्मक आन्दोलनों से स्वतन्त्रता-प्राप्ति कल्पनामात्र है-अपने इस दृढ़ विचार से प्रेरित होकर उन्होंने क्रान्ति का मार्ग स्वीकार किया। वे अंग्रेज सरकार की आँखों में धूल झोंककर जापान चले गए। वहाँ उन्होंने राष्ट्रभक्त हिन्दू एवं मुसलमानों को संगठित किया। उन्होंने ‘आजाद हिन्द सेना’ का गठन करके भारत-भूमि को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए युद्ध का बिगुल बजा दिया। उन्होंने कहा- “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” इन वचनों को सुनकर अनेक देशभक्त सेना में भर्ती हो गए। उन्होंने सैनिकों को प्रोत्साहित करते हुए कहा- “दिल्ली चलो, दिल्ली दूर नहीं है।” अर्थात् हम शीघ्र ही दिल्ली पर अधिकार कर लेंगे। इन उत्साहभरे वचनों को सुनकर सैनिक दिल्ली की ओर चल दिए। वस्तुतः आज की स्वतन्त्रता सुभाष जैसे राष्ट्रभक्तों के बलिदान का ही परिणाम है।
5-कीर्तिर्यस्य स जीवति।
सन्दर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- इस सूक्ति में बताया गया है कि सुभाष जैसे देशभक्त अपने यश के लिए अमर हो जाते हैं।
व्याख्या- जिसकी कीर्ति (मरणोपरान्त यश) रहती है वह (सदा) जीवित रहता है। मानव-शरीर नाशवान् है। संसार में कोई अमर होकर नहीं आया। एक-न-एक दिन सभी को मरना है और सभी का भौतिक शरीर नष्ट होना है, किन्तु जो लोग अपने समाज, देश या जाति की या मानवमात्र की महती सेवा कर जाते हैं, अपने जीवन स्वार्थ की बजाय परोपकार में बिताते हैं, उनका यश मरने के बाद भी बना रहता है। लोग उन्हें निरन्तर याद करते हैं, उनके प्रति भाँति-भाँति से श्रद्धाजंलि अर्पित करते हैं। इस प्रकार वे पुण्यशील महापुरुष भौतिक शरीर से हमारे बीच न रहने पर भी अपने यशरूपी शरीर से सदा जीवित रहते हैं। बड़े-बड़े राजाओं, महाराजाओं, विजेताओं के नाम इतिहास के पृष्ठों मात्र पर रह जाते हैं, लोग उन्हें पूर्णतः भूल जाते हैं। ऐसे लोग अपनी मृत्यु के साथ ही सदा के लिए मिट जाते हैं पर महापुरुष सदा मानवमात्र के मनों में निवास करके अमर हो जाते हैं। सुभाषचन्द्र ऐसे ही महामानव है।
पाठ पर आधारित प्रश्न उत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए
1- सुभाषस्य जन्म कुत्र अभवत्?
उ०- सुभाषस्य जन्म बङ्गप्रान्ते अभवत्।
2- सुभाषस्य पितुः नाम किम् आसीत्?
उ०- सुभाषस्य पितुः नाम जानकीनाथ वसुः आसीत्।
3- तस्य पितुः कः आसीत्?
उ०- तस्य पितुः राजकीय-प्राड्तिताकः आसीत्।
4- सुभाषचन्द्रः कस्यांनगर्यां शिक्षा प्राप्तवान्?
उ०- सुभाषचन्द्रः कालिकातानगर्यां शिक्षा प्राप्तवान्।
5- सुभाषचन्द्रस्योग्रक्रान्तेः भीताः आङ्ग्लशासकाः किमकुर्वन्?
उ०- सुभाषचन्द्रस्या अग्रक्रान्तेः भीताः आङ्ग्लशासका: इमं कारागारे अक्षिपन्।
6- सुभाष: कां नीतिमनुसरन्कारगारात् बहिर्गतः?
उ०- सुभाषः ‘शठे शाठयं समाचरेत्’ इति नीतिमनुसरन् कारागारात् बहिर्गतः।
7- सुभाषः कारागारा निर्गत्य कुत्र गतः?
उ०- कारागारात् बहिरागत्य सुभाषचन्द्रः पुरुषपुरनगरमगच्छत्।
8- सुभाष: केन नाम्ना जर्मनदेशंगतः?
उ०- सुभाष: ‘जियाउद्दीन’ इति नाम्ना जर्मनदेशं गतः।
9- सुभाषः कां सेनां सङ्घटितवान्?
उ०- सुभाष: मलयदेशे ‘आजाद हिन्द फौज’ इत्याख्यां सेनां सङ्घटितवान्।
10- सुभाषस्य सङगटनस्य अभिवादनपदम् उद्घोषः च किं आसीत्?
उ०- सुभाषस्य सङगटनस्य अभिवादनपदम् उद्घोष: ‘जयहिन्द’ इत्यासीत।
11- सुभाषचन्द्रः मलयदेशे कांसेनासङ्घटितवान?
उ०- सुभाषचन्द्रः मलयदेशे ‘आजाद हिन्द फौज’ इत्याख्यां सेनां सङ्घटितवान।
12- सुभाषचन्द्रस्यः रोमाञ्चकराः शब्दाः के आसन्?
उ०- ‘यूयं मह्यं रक्तमर्पयत्, अहं युष्मभ्यं स्वतन्त्रतां दास्यामि’ इति सुभाषचन्द्रस्य रोमाञ्चकराः शब्दा: आसन्।
13- सुभाषः कदा काङग्रेस्य सभापतिः वृतः?
उ०- सुभाषः सप्तत्रिंशदुत्तरैकोनविंशतिशततमे वर्षे काङ्ग्रेसस्य सभापतिः वृत्तः।
संस्कृत अनुवाद संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
1- श्री सुभाषचन्द्र कई बार कारगार गये।
अनुवाद- श्री सुभाषचन्द्रः अनेकदा कारागारमगच्छत्।
2- सुभाषचन्द्र बचपन से ही साहसी थे।
अनुवाद-सुभाषचन्द्रः बाल्यादेव साहसी आसीत्।
3- दिल्ली दूर नहीं है।
अनुवाद- नास्ति दिल्ली दूरम्।
4- अहिंसा परम धर्म है।
अनुवाद- अहिंसा परमो धर्मः।
5- दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिए।
अनुवाद- दुष्टेन सह दुष्टस्य व्यवहारं कुर्यात्।
6- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूगाँ।
अनुवाद- यूयं मह्यं रक्तमर्पयत्, अहं पुष्मभ्यं स्वतन्त्रतां दास्यामि।
7- सुभाषचन्द्र बोस का जन्म बंगाल में हुआ था।
अनुवाद-सुभाषचन्द्रः बोसस्य जन्म: बंङग प्रान्ते अभवत्।
8- हम कल बाजार जाएँगे।
अनुवाद- वयं श्व: आपणं गमिष्यामः।
9- तुम राम के घर जाते हो।
अनुवाद- त्वं रामस्य गृहं गच्छसि।
10- हम दोनों गेंद सेखेलेंगे।
अनुवाद-आवां कन्दुकेन क्रीडष्यावः।
संस्कृत व्याकरण संबंधी प्रश्न
1- निम्नलिखित शब्द रूपों में विभक्ति एवं वचन बताइए
उ०- शब्दरूप…………………. विभक्ति…………..वचन
स्वजन्मना ……………..तृतीया………………….एकवचन
भारते …………..सप्तमी…………..एकवचन
रात्रौ …………..सप्तमी…………..एकवचन
कौशलेन …………..तृतीया…………..एकवचन
वायुयानेन …………..तृतीया…………..एकवचन
नारीभिः …………..तृतीया…………..बहुवचन
निरीक्षणे …………..सप्तमी…………..एकवचन
मुखात् …………..पञ्चमी…………..एकवचन
वणिजः …………..पञ्चमी…………..एकवचन
वृत्तान्तम्………….. द्वितीया…………..एकवचन
चरणयोः …………..षष्ठी/सप्तमी…………..द्विवचन
2- निम्नलिखित शब्दों में धातु और प्रत्यय अलग करकर लिखिए
उ०- शब्द रूप………….. प्रत्यय…………..धातु
श्रुत्वा…………..क्त्वा …………..श्र
प्राप्य…………..ल्यप …………….प्र+आप्
भीताः …………..क्त……….भी
उत्तीर्य………….ल्यप………….उत्त् + तृ
समुत्थाय…………..ल्यप…………सम् + स्था
उक्तवा………….क्त्वा ………………..वद्
3- निम्नलिखित विग्रह के आधार पर समस्तपद बनाइए और समास का नाम लिखिए
उ० समास-विग्रह …………..समस्तपद…………..समास का नाम
कारागारस्य निरीक्षकाः………….. कारागारनिरीक्षकाः…………..तत्पुरुष समास
सुभाषे अनुरक्ताः …………..सुभाषानुरक्ताः…………..तत्पुरुष समास
प्रतिभया सम्पन्नः प्रतिभासम्पन्नः…………..तत्पुरुष समास
आङ्ग्लाश्च ते शासकाः………….. आङ्ग्लशासकाः…………..तत्पुरुष समास
4- निम्नलिखित सन्धि-विच्छेदों से सन्धि पद बनाइए तथा सन्धिका नाम लिखिए
उ०- सन्धि-विच्छेद …………..सन्धि -पद…………..सन्धिका नाम
इति + उक्तवा …………..इत्युक्तवा…………..यण सन्धि
कीर्ति + यस्य …………..कीर्तियस्य…………..रुत्व सन्धि
अत्र + एव………….. अत्रैव…………..वृद्धि सन्धि
परः + अयम् …………..परोऽयम्…………..उत्व सन्धि
सूत्रााणि+ अपि …………..सूत्राण्यपि…………..यण् सन्धि
बाल्यात् + एव………….. बाल्यादेव…………..जश्त्व सन्धि
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