UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 5 जातक-कथा
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पञ्चम पाठः जातक-कथा
निम्नलिखित गद्यावतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए
1 . अतीते प्रथमकल्पे . . . . . . . . . . . . . . . .इत्यवोचन् ।
[अतीते = विगत; बीते, अभिरूपम् = सुन्दर, सर्वाकारपरिपूर्णं > सर्व + आकार-परिपूर्णम् = समग्र आकृति से परिपूर्ण, चतुष्पदाः = पशु, सन्निपत्य = एकत्रित होकर, शुकनिगणाः = पक्षी, प्रज्ञायते = जाना जाता है, चतुष्पदेषु = चौपायों में, पुनरन्तरे > पुनः + अन्तरे = किन्तु (हमारे) बीच, अराजकः = राजा के बिना, स्थापयितव्यः = बैठाना या स्थापित करना चाहिए]
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘जातक-कथा’ पाठ के ‘उलूकजातकम्’ नामक शीर्षक से उद्धृत है ।
अनुवाद- प्राचीन काल के प्रथम कल्प में मनुष्यों ने एक सुन्दर, सौभाग्यशाली एवं समस्त सुलक्षणों से युक्त पुरुष को राजा बनाया । चौपायों (पशुओं) ने भी इकट्टे होकर एक सिंह को राजा बनाया । तब पक्षियों ने हिमालय प्रदेश में एक शिलातल पर इकट्ठे होकर कहा- “मनुष्यों में राजा दीख पड़ता है, वैसे ही चौपायों में भी, किन्तु हमारे बीच कोई राजा नहीं है । राजा के बिना रहना ठीक नहीं । (हमें भी) किसी को राजा के पद पर नियुक्त करना चाहिए । तब उन्होंने (राजा की खोज में) एक-दूसरे की दृष्टि दौड़ाते हुए एक उल्लू को देखकर कहा ‘यह हमको पसन्द है । ”
2- अथैकः . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . .कृत्वा आगमन् ।
[आशयग्रहणार्थम् = राय जानने के लिए, त्रिकृत्वः = तीन बार, अश्रावयत् = सुनाया, तप्तकटाहे = गर्म कड़ाही में, प्रक्षिप्तास्तिला > प्रक्षिप्ता: + तिला: = डाले गए तिल, धक्ष्यामः = भुन जाएँगे, विरुवन = चिल्लाता हुआ, उदपतत् = उड़ गया, एनमन्वधावत् > एनम् + अन्वधावत = इसके पीछे दौड़ा]
सन्दर्भ- पहले की तरह ।
अनुवाद- इसके बाद एक पक्षी ने सबका मत जानने के लिए तीन बार सुनाया (घोषणा की) । तब एक कौआ उठकर बोला-“जरा ठहरो, इसका राज्याभिषेक के समय ही (अर्थात् इस अतीव हर्ष के अवसर पर ही) ऐसा (भयानक) मुख है तो क्रुद्ध होने पर कैसा होगा ? इसके क्रुद्ध होकर देखने पर तो हम लोग गर्म कड़ाही में डाले गये तिलों की तरह जहाँ-के-तहाँ ही जल-भुन जाएंगे । ऐसा राजा मुझे अच्छा नहीं लगता । तुम लोगों का इस उल्लू को राजा बनाना मुझे ठीक नहीं लगता । इस समय के क्रोधहीन मुख को ही देखो, कुद्ध होने पर यह कैसा (विकृत) हो जाएगा ?” वह ऐसा कहकर ‘मुझे अच्छा नहीं लगता’, ‘मुझे अच्छा नहीं लगता’ चिल्लाता हुआ आकाश में उड़ गया । उल्लू ने भी उठकर उसका पीछा किया (या उसके पीछे भागा) । तब से ही दोनों एक-दूसरे के वैरी बन गये । पक्षी भी सुवर्ण हस को राजा बनाकर चले गये ।
3 . अतीते प्रथमकल्पे . . . . . . . . . . . . .दुहितरमादिदेश ।
[ दुहिता = पुत्री, वरमदात् > वरम् + अदात् = वर दिया, आत्मनश्चित्तन्तरुचितं > आत्मनः + चित्त + रुचितम् = अपने मनपसन्द, वृणुयात् = वरण करे]
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के जातक-कथा’ पाठ के ‘नृत्यजातकम्’ शीर्षक से उद्धृत है । अनुवाद- प्राचीनकाल में प्रथम कल्प में चौपायों (पशुओं) ने सिंह को राजा बनाया । मछलियों ने आनन्द मत्स्य (मछली) को एवं पक्षियों ने सुवर्ण हंस को (राजा बनाया) । उस सुवर्ण राजहंस की पुत्री हंसपोतिका (हंसकुमारी) अत्यधिक रूपवती थी । उस (हंसराज) ने उसे (हंसकुमारी को) वर दिया कि वह अपने मनोनुकूल पति का वरण करे । हंसराज ने उसे वर देकर हिमालय के पक्षियों को इकट्ठा कराया । विभिन्न प्रकार के हंस, मोर पक्षीगण आकर एक विशाल शिलातल पर इकट्ठे हुए ।
हंसराज ने पुत्री को आदेश दिया कि (वह) आकर अपने मनपसन्द पति को चुने ।
4 . साशकुनिस . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .अगच्छ त ।
[मणिवर्णग्रीवं = मणि के रंग के समान गर्दन वाले, चित्रपेक्षणम् = रंग-बिरंगे पंखों वाले, लज्जाञ्च > लज्जाम् + च = और लज्जा को, प्रतिच्छन्न = बिना ढका (नंगा), ह्रीः = विनय, बर्हाणां = पंखों को, समुत्थाने = उठाने में, नास्मै > न + अस्मै = इसे नहीं, गतत्रपाय = नष्ट हो गई लज्जा जिसकी वह; निर्लज्ज, परिषन्मध्ये > परिषत् + मध्ये = सभा के बीच, भागिनेयाय = भांजे के लिए, हंसपोतिकाम् = हंस की पुत्री ]
सन्दर्भ- पूर्ववत्
अनुवाद- उसने पक्षी समुदाय पर दृष्टि डालते हुए नीलमणि के रंग की गर्दन और रंग-बिरंगे (या विचित्र) पंखों वाले मोर को देखकर कहा कि ‘यह मेरा स्वामी हो । ‘ मोर ने (यह कहते हुए कि) ‘आज भी तुम मेरा बल नहीं देखती हो’ (अर्थात् अभी तुमने मेरा पराक्रम देखा ही कहाँ है ?), बड़े गर्व से निर्लज्जतापूर्वक उस बड़े पक्षी समुदाय के बीच पंख फैलाकर नाचना शुरू किया और नाचते हुए नग्न हो गया । सुवर्ण राजहंस ने लज्जित होकर कहा-“इसे तो न (अन्दर का) संकोच है और न ही पंखों को उठाने में (बाहर की) लज्जा । इस निर्लज्ज को मैं अपनी पुत्री नही दूँगा । यह मेरी पुत्री से विवाह योग्य नहीं है । हंसराज ने उसी परिषद् के बीच अपने भांजे हंसकुमार को पुत्री दे दी । मोर हंसपुत्री को न पाकर लजाकर उस स्थान से भाग गया । हंसराज भी प्रसन्न मन से अपने घर को चला गया ।
निम्नलिखित सूक्तिपरक पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए
1 . अकुद्धस्य मुखं पश्य कथं कुद्धो भविष्यति ?
सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘जातक-कथा’ पाठ के ‘उलूकजातकम्’ शीर्षक से अवतरित है ।
प्रसंग-कौआ उल्लू को अपना राजा न मानने हेतु जो तर्क देता है, उसी का इस सूक्ति में कहा गया है ।
व्याख्या- पक्षियों की सभा में राजा के लिए जब उल्लू के नाम का प्रस्ताव आया तो एक कौए ने इसका विरोध करते हुए कहा कि अभी यह उल्लू कुद्ध नहीं है, राज्याभिषेक के समय भी इसका मुख देखो कैसा लग रहा है ? जब अभी यह दशा है, तब क्रुद्ध होन पर इसका मुख कितना डरावना लगेगा ? इसलिए मुझे इसका राजा बनना अच्छा नहीं लगता है । भाव यह है कि जब यह क्रोधहीन स्थिति में इतना क्रोधित दिखाई दे रहा है तब क्रोध की स्थिति में कितना अधिक क्रोधित दिखाई पड़ेगा । तात्पर्य यह है कि प्रसन्नमुख व्यक्ति ही सर्वप्रिय होता है । क्रुद्धमुखाकृति को कोई पसन्द नहीं करता ।
सन्दर्भ- पहले की तरह प्रसंग-प्रस्तुत सूक्ति में राजा के महत्त्व पर पक्षियों के द्वारा प्रकाश डाला गया है ।
व्याख्या- प्राचीनकाल में जब मनुष्यों ने सर्वगुणसम्पन्न एक व्यक्ति को राजा बनाया और पशुओं ने सिंह को अपना राजा बनाया, तब पक्षियों ने भी आपस में मिलकर विचार किया कि क्यों न हमें भी किसी पक्षी को अपना राजा बनाना चाहिए । जब सभी जीवों ने अपना-अपना राजा चुन लिया है, ऐसे में हमारा बिना राजा के रहना उचित नहीं है; क्योंकि राजा ही प्रजा की रक्षा
और कल्याण के उपाय में लगा रहकर सदैव उसका पालन करता रहता है ।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए
1 . चतुष्पदाः सन्पित्य किम् अकुर्वन् ?
उत्तर – अतीते प्रथमा कल्पे चतुष्पदा: मिलित्वा सिंह राजानमकुर्वन् ।
2 . पक्षिणः कं राजानं कुर्तव्यचारयन् ?
उत्तर – पक्षिण: एकं उलूकं राजानं कुर्तं व्यचारयन् ।
3 . ‘ईदृशो राजा मह्यं नरोचते’ इति कस्योक्तिः ?
उत्तर – ‘ईदृशो राजा मह्यं न रोचते’ इति काकस्य उक्तिः ?
4 . जनाः कीदृशं पुरुषं राजानाम् अकुर्वन् ?
उत्तर – जनाः एकमभिरूपं सौभाग्यप्राप्तं राजनाम् अकुर्वन् ।
5 . चतुष्पदाः कः राजानाम् अकुर्वन् ?
उत्तर – चतुष्पदाः सिंह राजानाम् अकुर्वन् ।
6 . काकः कथमुलूकस्य विरोधमकरोत् ?
उत्तर – काक क्रुद्धा कृतिकारणात् उलूकस्य विरोधनम् अकरोत् ।
7 . पक्षिणोऽन्ते कः राजानमकरोत् ?
उत्तर – पक्षिणोऽन्ते सुवर्णहंस राजानमकरोत ।
8 . सुवर्णराजहंसस्य दुहितुः नाम किमासीत् ?
उत्तर – सुवर्णराजहंसस्य दुहितुः नाम हंसपोतिका आसीत् ।
9 . हंसपोतिका पतिरूपेण कस्य वरणम् अकरोत् ?
उत्तर – हंसपोतिका पतिरूपेण मयूरस्य वरणम् अकरोत् ।
10 . मयूरः कीदृशः आसीत् ?
उत्तर – मयूरः मणिवाग्रीवः चित्रप्रेक्षणः च आसीत् ।
11 . नानाप्रकाराःहंसमयूरादयः कुत्रं संन्यपतन् ?
उत्तर – नानाप्रकाराः हंसमयूरादयः एकस्मिन् महति पाषाणतले संन्यपतन् ।
12 . राजहंसः परिषन्मध्ये कस्मै स्वदहितरम् अददात् ?
उत्तर – राजहंस: परिषन्मध्ये आत्मनः भागिनेयाय हंसपोतकाय स्व दुहितरम् अददात् ।
13 . मयूरो हंसपोतिकामाप्राप्य किमकरोत् ?
उत्तर – मयूरो हंसपोतिकामाप्राप्य लज्जितः, तस्मात् स्थानात् पलायितः ।
14 . मयूरः शकुनिसङ्के किम अकरोत् ? उत्तर – मयूरः शकुनिसङ्के पक्षौ प्रसार्य नृत्यम् अकरोत् ।
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
1 . पशुओं ने शेर को राजा बनाया ।
अनुवाद- चतुष्पदा सिंहस्य राजानाम् अकुर्वन् ।
2 . हंसपोतिका अत्यन्त रूपवती थी ।
अनुवाद- हंसपोतिका अतीव रूपवती आसीत् ।
3 . हंसपोतिका ने पति रूप में मोर का वरण किया ।
अनुवाद-हंसपोतिका पतिरूपेण मयूरस्य वरणं अकरोत् ।
4 . यह मुझे अच्छा नहीं लगता ।
अनुवाद- इदं मह्यं न रोचते ।
5 . राजहंस ने अपनी पुत्री मोर को नहीं दी ।
अनुवाद- राजहंस आत्मनः दुहिता मयूरस्य न अददात् ।
6 . तुमने मेरा बल नहीं देखा ।
अनुवाद- त्वं मम बलं न पश्य ।
7 . मोर वन में नाचता है ।
अनुवाद- मयूरः वनें नृत्यति ।
8 . उल्लू ने कौए का पीछा किया ।
अनुवाद-उलूकः काकः अन्वधावत् ।
9 . मछलियों ने आनन्द मत्स्यको राजा बनाया ।
अनुवाद- मत्स्या आनन्द मत्स्यस्य राजानाम् अकुर्वन् ।
10 . सभी पक्षी हिमालय प्रदेश में एकत्रित हुए ।
अनुवाद- सर्व शकुः हिमालयः प्रदेशे समागत्यः ।
संस्कृत व्याकरण संबंधी प्रश्न
1 . निम्नलिखित शब्दों में से सन्धि-विच्छेदकीजिए तथा सन्धि का नाम लिखिए
सन्धि पद …….सन्धि-विच्छेद………..सन्धिनाम
पक्षिभिरुक्तम् …….पक्षिभिः + उक्तम्…….रुत्व सन्धि
मयूरादयः …….मयूरा+ उदयः…….दीर्घ सन्धि
प्रक्षिप्तास्तिला …….प्रक्षिप्ताः + तिलाः…….सत्व सन्धि
तावन्महतः……. तावत् + महतः…….अनुनासिक सन्धि
पुनरन्तरे: पुनः + अन्तरे…….रुत्व सन्धि
इत्युक्तवन्तः……. इति + उक्तवन्तः…….यण सन्धि
अद्यापि …….अद्य + अपि…….दीर्घ सन्धि
राज्याभिषेक……. राज्य + अभिषेक…….दीर्घ सन्धि
सर्वाकार …….सर्व + आकार……दीर्घ सन्धि
अथैकः …….अथ + एकः…….वृद्धि सन्धि
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